न जाने कहां छिपे-दुबके रहे “श्वान-श्रृगाल”

: न आजतक का अकेला आया, और न पशुवत पशुपतिनाथ : वार्तालाप आमंत्रण हेतु कई संदिग्ध फोन आये : मैंने अपनी जगह आमंत्रित किया, उनके यहां नहीं : कुमार सौवीर लखनऊ : पिछले तीन दिनों से बलिया में हूँ। बंसी-बांसुरी बजाते इधर-उधर भ्रमण कर रहा हूं। लेकिन पत्रकारिता की एक भी “विष-कन्या” मेरे सामने नहीं […]

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