सुबह-ए-बनारस? बाबा जी का घण्‍टा

: सुबह-ए-बनारस से नहीं, काशी की पहचान सर्वविद्या की राजधानी, विश्‍वनाथ मंदिर, संकरी गलियों व घाटों से विख्‍यात है : गाइड की बकलोली में देशी-विदेशी चूतिया जजमान जेब खोलते हैं : नंगा अवधूत- दो: कुमार सौवीर बनारस : (नंगा अवधूत-एक से आगे) विदेशी पर्यटकों का प्रिय स्‍थल है वाराणसी। हालांकि उनमें से ज्‍यादातर तो सारनाथ […]

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मथुरा छूट गया, पर गोपियों की तरह छटपटाता है यह “पंडा”

: याद आता है मंदिर, बंदर, घाट, गलियां, बेबाक भाषा, गालियां और बिंदास औरतें : जगदीश्‍वर चतुर्वेदी बेहाल है कोरोना के सन्नाटे के बीच मथुरा की खोज में : जगदीश्‍वर चतुर्वेदी कोलकाता : इन दिनों कोरोना के कारण मथुरा ध्वस्त पड़ा है। मंदिर, बाजार, प्रोहित सभी तबाह पड़े हैं।इस मथुरा की कल्पना कभी नहीं की […]

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जीवन के ठसपन से निर्मल प्रवाह का प्रतीक हैं बनारस की सीढि़यां

: सीढि़यों ने पूरी काशी को अविमुक्ति नगर में तब्दील कर दिया : उतरने-चढ़ने का अद्भुत दर्शन देखना-समझना हो तो बनारस आइये : कुमार सौवीर वाराणसी : काशी विकट क्षेत्र है। उसका आकार आस्था है, प्रवाह जीवन का स्पंदन है, सूर्योदय उसका आध्यात्म है, प्रेम उसका अन्तर्मन है, मौत यहां हर्ष है, शोक उसका उल्लास […]

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रांड़, सांड़, सीढ़ी, संन्यासी से मत बचो। यह सब दायित्व हैं

: आवा राजा बनारस, आज फिर घुसल जाओ बनारस मा : इसी गूढ़ार्थ के आधार पर ही तो आज जीवित है काशी : कुमार सौवीर लखनऊ : आइये, आज फिर घुसा जाए बनारस में। बनारस में घुसने को हला जाता है। मुझे पता नहीं कि यह हलना शब्द कैसे बना। शायद हल से बना होगा। […]

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