
: जौनपुर में रंगीले-गोश्त का पुराना धंधा मशहूर है कतील का : पारसनाथ यादव ने शिवपाल यादव की सेवा में कतील को लगाया : तब के डीएम जीतेंद्र कुमार ने ढेरों असलहे मंजूर किये :
कुमार सौवीर
जौनपुर: पुराने हिन्दुस्तान की बात छोड़ दीजिए, लेकिन ताजा हिन्दुस्तान में जितने भी बडे हैसियतदार लोग हैं, उनमें से ज्यादातर के कपडों, चेहरों और चरित्र पर निहायत बदबूदार कींचड पोता हुआ है। इस मामले में जौनपुर की हालत तो शायद सबसे ज्यादा घिनौनी है। यहां के अधिकांश बडे हैसियतदारों की पूंछ आप उठा लीजिए, उनकी हकीकत का मुख्य-द्वार आपको सामने साफ दिख जाएगा। ताजा मामला है चंद बरसों पहले तीन लडकियों को मुजफ़्फ़रनगर से लाकर गर्मगोश्त बेचने वाले उस मोहम्मद कतील शेख की, जो आज लखनऊ से लेकर दिल्ली तक पत्रकारिता और राजनीतिक क्षेत्र में बहुत बडी हैसियतदार हो गया। लेकिन उसकी चमक बस डेढ दशक तक ही रही, आज वह किसी बुझे धूमकेतु की तरह लखनउ के गोमतीनगर पुलिस थाना की हवालात में बंद है। आरोप है अपनी बेटी की उम्र से भी कम युवती से दुराचार का, और तैयारी है उसे जेल भेजने की।

सडक की दूसरी पटरी पर है मीर मस्त मोहल्ला। शहर की बच्चियों की शिक्षा-दीक्षा के लिए यहां साजिदा इंटरकालेज जरूर है। लेकिन इस मोहल्ले में गंदगी भी खासी पसरी है। मीर-मस्त, जहां मीर की परम्परा में अहमद निसार जैसे देश के विख्यात, संवेदनशील और अजीमुश्शान शायर बसते हैं, वहीं मस्त के तौर पर यहां एक शेख-खानदान भी मौजूद है, जिसने अपने इस पूरे खानदान को देह-व्यापार में खपा डाला। इसी के नूर-ए-चश्म हैं मोहम्मद कतील शेख। इस खानदान का यह धंधा तो खैर खासा पुराना है, लेकिन कतील शेख के चाचा ने इस धंधे की धंधेवालियों के खून-पसीने के बल पर खूब पुष्पित-पल्लवित किया।

दरअसल, कतील के सितारे लगातार चमकने-दमकने लगे थे। उधर जिले में समाजवादी पार्टी के सर्वोच्च नेता पारसनाथ यादव थे, जो मुलायम सिंह यादव को अपना महबूब कहते हुए पार्टी की हर गोटी पर कब्जा किये थे। पारसनाथ को गर्म-गोश्त का कोई शौक था या नहीं, यह तो पता नहीं। मगर जमीन देखते ही उनकी लार टपकने लगती थी। पारस को पता था कि उनकी ताकत जुटाने के लिए खुद से बडे असरदार लोगों की सेवा करना बहुत जरूरी होता है, इसलिए पारसनाथ की पारखी नजर ने मोहम्म्द कतील शेख को अपना चेला बना लिया। कतील को इतना बडा सम्मान और क्या हो सकता था। वह पारसनाथ के अंग-अंग को पोसने और धोने-पोंछने को तत्पर हो गया।
एक दिन कतील की लॉटरी निकलने का वक्त आ ही गया। हुआ यह कि सन-2003 के आसपास शिवपाल सिंह यादव यहां अपने लाव-लश्कर के साथ यहां के रिवर-व्यू होटल में टिके। पारसनाथ यादव ने शिवपाल की सेवा के लिए कतील शेख को लगा दिया। सूत्रों ने बताया कि वह शिवपाल के कपडों को धोने-प्रेस करने औ
र दीगर वांछित जरूरतों को पूरा करेगा। दो दिन की सेवा में ही शिवपाल सिंह यादव मोहम्मद कतील शेख की सेवाओं और उनकी कार्य-पद्यतियों की सम्भावनाओं से प्रसन्न हो गये। हुक्म हुआ कि कतील शेख अब जल्दी ही लखनऊ आकर शिवपाल से मिलेंगे। बस दो-चार मुलाकातों में ही कतील ने शिवपाल सिंह यादव को जीत लिया।

गर्मगोश्त से पत्रकारिता बजरिया राजनीतिक पायदान की दास्तान को दोलत्ती डॉट कॉम ने श्रंखलाबद्ध प्रस्तुत करने का अभियान छेड दिया है। इसकी पहली कडी को पढने के लिए कपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए।